बुधवार, 23 जून 2010

नदी और पुल


नदी
और पुल
के बीच है
अनोखा रिश्ता,
पुल खड़ा करता रहेगा
इन्तजार
नदी
यू ही बहती रहेगी
अनवरत


नदी
लगातार मारती रहेगी
हिलोर
पुल
यो ही शांत रहेगा खड़ा
शाश्वत
क्योंकि उसे पता है
दोनों का प्रारब्ध


पुल की ओर से
नदी लगती है
बहुत खूबसूरत
नदी की ओर से
पुल लगता है
असंभव
जबकि
पुल की जड़े
कायम होती है नदी में,
नदी समझ नहीं पाती कभी

8 टिप्‍पणियां:

  1. "नदी समझ नहीं पाती कभी"
    हमेशा की तरह लाजवाब
    वैसे एक बात है नदी इतनी भी नासमझ नहीं होती की कोई उसे पेट में टांगे गड़ाए बैठा हो और वो कुछ न कहें,ये तो उसको माँ का दर्जा मिल है सो चुप रहती है

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  2. रचना ने बहुत सुन्दर बात कह दी कि नदी इतनी बुद्धू नहीं होती वह माँ है इसलिए सब कुछ जानकर भी नहीं बोलती ...आपकी कविता हमेशा कि तरह अति सुंदर है ..नदी और पुल का साथ स्त्री पुरुष जैसा लग रहा है ...बधाई

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  3. पुल खड़ा करता रहेगा
    इन्तजार
    नदी
    यू ही बहती रहेगी
    अनवरत

    पुल और नदी का मानवीकरण... बहुत अच्छा लगा....अलग सी सोच...कहीं प्रेमी प्रेमिका का ...तो कहीं (रचना ) की बात से सहमत होते हुए...माँ और संतान का...

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  4. पुल की ओर से
    नदी लगती है
    बहुत खूबसूरत
    नदी की ओर से
    पुल लगता है
    असंभव
    जबकि
    पुल की जड़े
    कायम होती है नदी में,
    नदी समझ नहीं पाती कभी...kuch rishte hote hi hain aise

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  5. आपकी रचनाओ मे नदी का सा प्रवाह है
    बहुत सुन्दर

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