शनिवार, 5 जून 2010

आंच


सही आंच पर
पकती है
रोटी
नरम और
स्वादिष्ट
बताया था
तुमने
जब खो रहा था
मैं
अपना धैर्य


जब तक
चूल्हे में रहती है
आंच
रहती है
मर्यादित


रिश्तों को
सहेजने के लिए भी
चाहिए
भावों की
सही आंच
समय समय पर


आंच
कई बार
शीतल होती है
जैसे
तुम्हारे
आँचल का आंच
जिसने
अपनी नरमाहट से
दिया ए़क नया जीवन

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