बहुत याद आती है
कच्चे बांस की
पतली छड़ी
और अपनी पीठ पर
उधडे उनके निशान
जब
अपने बेटे को
ईडिएट बाक्स के आगे से
उठाने में रहता हूँ
असफल
अनुशासन की
पहली सीख
उसी छड़ी ने
थी सिखाई
और आज भी साथ है
पिताजी के
नहीं रहने पर भी
बहुत याद आती है
पिताजी का
मुहं अँधेरे उठाना
और उठाना
जब
नहीं उठा पाता हूँ
अपनी बिटिया को
जो कल रात देर से लौटी
किसी पार्टी से
और
आज भी सूरज
नारंगी दीखता है सुबह सुबह
नहीं पता
मेरे बच्चों को
नहीं कहा कभी
मैंने अपने बाबूजी को
हैप्पी फादर्स डे
लेकिन
बहुत याद आते हैं
बाबूजी
प्रायः रोज ही
और
अनायास ही
धन्यवाद में
उठ जाते हैं हाथ
ईश्वर की ओर
बहुत सुंदर लिखा आपने .....
जवाब देंहटाएंमौज़ू कविता।
जवाब देंहटाएंपीढि़यों से पीढि़यों तक फासले बढ़ते रहे
रह गया पीछे बहुत कुछ, और हम चलते रहे।
लिखने की कोई हद होती है. कितना उतर कर लिखते हो.मान गए. दो ज़माने की बात करते करते बहुत गहरी बात कर देते हो.
जवाब देंहटाएंसादर,
माणिक
संवेदनशील .. सच में वो अनुशासन आज देखने को नही मिलता .. मानवी रिश्तों में वो महक सताती है ... बहुत अच्छा लिखा है ...
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंगजब!! मानो अपनी गाथा पढ़ रहे हों...शानदार!!
जवाब देंहटाएंbahut jyada khubsurat..mujhe apni ek kshanika yaad aa gayi....
जवाब देंहटाएंताकि पर सकें मेरे,
बेरोकटोक निवाले.
मेरे पिता ने उगा लिए,
हाथ ना जाने कितने छाले.
मैंने दूर के मंदिरों में,
जाना छोड़ दिया है.
naman apki lekhni ko, aisa likhne ke liye
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....और सटीक भी
जवाब देंहटाएंआप को पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎँ !!
जवाब देंहटाएंpita aur maa hamesh hi yaad rehte hai......
जवाब देंहटाएंबहुत याद आते हैं बाबूजी .. सच में वह सरल और मुक्त अनुशासन अब कहाँ !!! अब कभी कभी तो संस्कार बेबस लगते हैं .सुन्दर कविता के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंक्या कहें अब आज के इस चलन को, बस ऑंखें भर आयीं. इतनी कम पंक्तियों में एक लम्बी दास्ताँ वाह वाह !!!!
जवाब देंहटाएंmujhe bhi mere papa bahut yaad aate hain...janamdin per ek pyaara sa gulab dete hue
जवाब देंहटाएंYahaan "par" ko "aa" padhein
जवाब देंहटाएंShukriya
बहुत याद आते हैं
जवाब देंहटाएंबाबूजी
प्रायः रोज ही
और
अनायास ही
धन्यवाद में
उठ जाते हैं हाथ
ईश्वर की ओर
I lost my father in 2001 and do remember him a lot... thanks for enlightening the good childhood days...