शनिवार, 5 जून 2010

हरी पत्तियों की सिसकियाँ


जब भी
हमने अपनी गाडी के
एक्सलेटर को
उत्साह से
पूरा वजन दे दबाया है
सिसकी है
नन्ही हरी पत्तियां
लेकिन
सुन नहीं पाए हम
इंजन के शोर में


जब भी
हमने वातानुकूलित रेस्तरा में
मनाया है आनंद
अपनी सफलताओं का
सिसकी है
नन्ही हरी पत्तियां
लेकिन
सुन नहीं पाए हम
ड़ी जे के शोर में

10 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी कितनी ही सिसकियाँ हम पल पल नहीं सुन पाते!!


    बढ़िया रचना!

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  2. सही है। इनकी सिसकियां यदि हम सुन लें तो विनाश से खुद को बचाएंगे।

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  3. सिसकी है
    नन्ही हरी पत्तियां
    लेकिन
    सुन नहीं पाए हम
    ड़ी जे के शोर में

    दि हम सुन लें तो विनाश से खुद को बचाएंगे |

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  4. आज की दुनिया का कटु शाश्वत वास्तविक सत्य ..

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  5. bahut khub

    फिर से प्रशंसनीय
    http://guftgun.blogspot.com/

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  6. kisi ka dard kaha koi asani se smajh pata hai ham bhi usi me se hai shayad

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