पड़े जो
तुम्हारे कदम
मेरे आँगन में
फुदुकने लगी
सैकड़ो गौरैया और
कागा करने लगा
शोर
कोयल कूक कूक कर
बताने लगी
आम की बगिया को कि
बहार आयी हैं
मेरे आँगन
अमरुद की डाली
झुक गयी
तेरे क़दमों में और
रख दिया अपने फल
समर्पण के भाव से
खिड़कियाँ
खिलखिला उठी
और दरवाजे
हाथ जोड़
खड़े हो गए
दीवारों ने
शुरू कर दिया
मुस्कुराना और
खड़े कर दिए
अपने कान
सुनने को तुम्हारी
खनकती हंसी
तुलसी के पत्ते
लगे महकने
और
समा गए तुममे
और
लाल टुह टुह
उड्हुल
अपने रंग को
भर दिया
तेरी मांग में
और
पहले से कहीं अधिक
प्रिय लगने लगी थी
तुम
पड़े जो
तुम्हारे कदम
मेरे आँगन
मन मेरा
बन गया मंदिर
और
तुम उसके
ईश्वर
(यह कविता मैं ने अपनी पत्नी के लिए लिखी थी जब पहली बार मेरे संग मेरे आँगन आयी थी वह। उसे पुनः समर्पित )
श्रद्धा है इस प्यार में, और यही मजबूत विश्वास है
जवाब देंहटाएंआप प्राकृतिक बिम्बो का सुन्दर प्रयोग करते है.
जवाब देंहटाएंसुखद है आपकी रचनाओ को पढना
बहुत सुन्दर रचना
रचना मन को लुभा गई
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga padh kar...
जवाब देंहटाएंaangan me pada har kadam aapke dil ke ander aur ander le chala,ye ahsas har shabd me samaya hai....badiya rachna....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता ने मुझे मेरा एक गीत याद दिला दिया:
जवाब देंहटाएंगोरी इस अंगना में जब से तू आई है
कैसी भी पवन चले, लगती पुरवाई है।
बहुत अच्छे भाव लिये हैं आपने कविता में। आज एक अससम़ंजस की स्थिति भी देर हो गयी, रोज आपसे एक नई कविता प्राप्त होने पर मैं सोचता था कि भाई क्या गति है कविता लिखने की।
आज कुछ परदे हटे
धुँध के बादल छटे।
शाम को देखा उन्हें
रात अब कैसे कटे।
bhaut hi sundar upmaye hai aur sunder aagman hai unka angan mein
जवाब देंहटाएंBHAI ARUN JI,
जवाब देंहटाएंMAIN AAP KE BLOG PAR NIYMIT AATA HUN ! PADHTA HUN .AAP BAHUT HI ACHHA LIKH RAHE HAIN .UPARYUKT KAVITA BAHUT SHANDAR HAI.
BADHAI HO !
मन के भावोंको बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं...
जवाब देंहटाएंnice use of domestic imagery,nice placement of emotions in words.Nicely communicated.Beautiful poem of love.
जवाब देंहटाएंकोयल कूक कूक कर
जवाब देंहटाएंबताने लगी
आम की बगिया को कि
बहार आयी हैं
मेरे आँगन
अमरुद की डाली
झुक गयी
तेरे क़दमों में और
रख दिया अपने फल
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
मंगलवार 22- 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
दीवारों ने
जवाब देंहटाएंशुरू कर दिया
मुस्कुराना और
खड़े कर दिए
अपने कान
सुनने को तुम्हारी
खनकती हंसी
कविता तो बहुत अच्छी है पर पहली बार पत्नी को ले कर आये हो और "दीवारों ने कान खड़े कर दिए" ये अच्छी बात नहीं है.इस पर एक शेर सुनाती हूँ
"खामोश !!!
दीवारों के भी कान होते हैं
दरवाज़े मेहमान होते हैं
खिड़कियाँ तो यूँ हीं बदनाम होती हैं
मुखबिर तो रौशनदान होते हैं"